वनपरिक्षेत्र तपकरा में पेड़ों का क़त्ल जारी, राजस्व भूमि बना लकड़ी माफिया का अड्डा – वन विभाग की लापरवाही बेहिसाब!…

वनपरिक्षेत्र तपकरा में पेड़ों का क़त्ल जारी, राजस्व भूमि बना लकड़ी माफिया का अड्डा – वन विभाग की लापरवाही बेहिसाब!…

फॉरेस्ट बेरियर्स पर संसाधन भी, निगरानी भी- फिर कैसे हो रही तस्करी? :

जशपुर- जिले का वनपरिक्षेत्र तपकरा के ग्राम बोखी में राजस्व भूमि पर अवैध पेड़ों की कटाई ऐसे की जा रही है मानो जंगल नहीं, किसी ठेकेदार की निजी जागीर हो। ग्रामीणों का साफ आरोप है कि सुनसान इलाकों में लंबे समय से भारी पैमाने पर पेड़ों का नरसंहार चल रहा है, लेकिन वन विभाग के अधिकारी “अनभिज्ञता” का ढोंग रचकर चुप्पी साधे बैठे हैं।

वन विभाग का बचाव-कि केवल सेमल काटी जा रही है- स्थानीयों के गले नहीं उतर रहा। ग्रामीणों का कहना है कि सेमल के नाम पर सरई और महुआ जैसे बहुमूल्य पेड़ धड़ाधड़ काटे जा रहे हैं, और कटाई के बाद ठूंठों को रातों-रात मिटाकर सबूत पूरी तरह साफ कर दिए जाते हैं।

दिन में कटाई… रात में तस्करी : ग्रामीण बताते हैं कि दोपहर में पेड़ गिराए जाते हैं और रात के अंधेरे में कंटेनरों में लकड़ी भरकर अंबिकापुर मार्ग से सीधे यूपी, बिहार और एमपी तक भेजी जाती है। ट्रक और पिकअप वाहन सुनसान जगह पर घंटों खड़े रहते हैं, मगर वन विभाग को कुछ दिखता ही नहीं।

यह वही तस्कर गिरोह बताया जा रहा है, जिसने पहले तुबा क्षेत्र में सैकड़ों पेड़ों को राजस्व भूमि से साफ कर दिया था। शिकायतों के बावजूद कार्रवाई के नाम पर केवल औपचारिकता निभाई गई और माफिया फिर बोखी इलाके में सक्रिय हो गया।

फॉरेस्ट बेरियर्स पर संसाधन भी, निगरानी भी- फिर कैसे हो रही तस्करी? :

स्थानीय लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब वन विभाग के बेरियरों पर पर्याप्त संसाधन, सीसीटीवी और चौकसी है, तो इतने बड़े पैमाने पर तस्करी आखिर कैसे निकल जाती है? कहीं न कहीं मौन समर्थन या भारी स्तर की लापरवाही साफ झलक रही है।

ग्रामीणों की मांग : ग्रामीणों ने कहा कि यदि इसी तरह पेड़ कटते रहे तो कुछ वर्षों में यह इलाका जंगल नहीं, उजाड़ मैदान बन जाएगा। लोग मांग कर रहे हैं कि-

  • वन विभाग की उच्च स्तरीय जांच हो,
  • तस्करी में शामिल लोगों और अधिकारियों की मिलीभगत उजागर की जाए,
  • और क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा व वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए तुरंत कठोर कार्रवाई की जाए।

वन विभाग पर सवाल भारी हैं- पर जवाब अब भी गायब। तपकरा का जंगल बचाना है तो अब दिखावे की नहीं, जमीन पर उतरकर कार्रवाई की जरूरत है।

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